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बेटा तैयार हुआ, आशीर्वाद लिया और निकल गया देश सेवा के लिए. पूरे परिवार को छोड़ कर. खुद के बच्चों को सोता हुआ छोड़ कर, माँ-बाप-भाई-बहन सबको अगली बार आने का वादा कर. लेकिन इस बार उसके मन में देश भक्ति का ख्याल तो है, कहीं अन्दर यही सोच भी है कि बॉर्डर पर जा रहा हूँ, लड़ने. जानते हुए कि उसकी ड्यूटी इस बार लगी है, जम्मू कश्मीर में. अपने ही कश्मीरियों के बीच जंग करने जा रहा है. जहाँ ये कहना आसान नहीं है कि कौन वफादार है और कौन दगाबाज?

जम्मू कश्मीर का माहौल हमेशा से ही तनाव भरा रहा है. वहां झेलम, घाटी की बर्फ अक्सर लाल ही रहती है. कभी आतंकवादियों की नापाक करतूतों से तो कभी भारतीय सेना के जवानों के लहू से. अब पिछले कुछ समय में वहां एक अलग ही तरह की जंग से सामना कर रहे हैं भारतीय सैनिक. वो हैं वहां के लोग, जो सेना का ही विरोध कर रहे हैं और उन्हीं पर पत्थर बरसा रहे हैं. इसे सीधे तौर पर आन्तरिक विरोध भी कह सकते हैं.

कश्मीर की घाटियाँ आजकल रोज रंग बदलती नज़र आ रही है. वहां कभी पकिस्तान के झंडे नज़र आते हैं तो कभी पाकिस्तानी राष्ट्रगान गाया जाता है, कभी “Go back india, We will join Pakistan !” जैसे नारे घाटियों में गूँज उठे हैं. लोगों का विरोध इतना हो गया था कि सेना पर एसिड बम, पट्रोल बम और पत्थर उठा लिए जाते है. इसके विरोध में पैलेट गन का भी इस्तेमाल किया गया तो कुछ कथित ह्यूमन राइट लॉबी इसका विरोध किया और सेना के विरोध में कोर्ट तक चले गए. सुप्रीम कोर्ट ने भी मामूली सख्ती दिखाते हुए स्पष्ट किया कि यदि वे आश्वासन दें कि अगर बच्चे और औरतें को आगे कर पत्थर और एसिड बम नहीं उठाये तो पैलेट गन का इस्तेमाल बंद कर दिया जायेगा. लॉबी अभी तक आश्वासन नहीं देने की स्थिति में नहीं है.

लेकिन सेना के जवानों के हेलमेट उछालकर अपमान करने और मेजर गोगोई पर गन्दी सियासत के बाद अब लगता है कि अभी सेना ने नरमरूख गाँधीवाद रवैय्ये से तौबा कर ली है. पहले जो होता था उसके साथ समझौता कर लिया जाता था या राजनैतिक हस्तक्षेप के बाद मुद्दे को जबरदस्ती दफ़नकर दिया जाता था. अब सेना ने सामने आ कर इस समस्या को जवाब देने का फैसला कर लिया लगता है. भारतीय थल सेना प्रमुख बिपिन रावत का एक बयान आया और सभी विरोधियों के चेहरे पर हवाईयां उड़तीं नजर आ रही हैं. सभी को हक्का-बक्का कर देने वाले इस कड़वे घूँट वाले असल मायने क्या हैं?

इस बार सेना प्रमुख बिपिन रावत का गुस्सा उनके हर लफ्ज़ में दिखाई दे रहा है, उन्होंने शुरुआत ही कुछ ऐसे कि जैसे उनकी बातों से ही गुनहगारों को मौत आ जाये या जो अगली बार घाटी में पत्थर उठाने की सोच भी रहा हो वो अपना इरादा बदल ले. उन्होंने कहा कि मैं मेरे जवानों को पत्थरों और पेट्रोल बम के सामने बुत बन कर खड़े रहने के लिए नहीं बोल सकता. मैं नहीं कह सकता उन्हें कि वो वहां एक तरह से आत्महत्या कर लें.

“लोग हम पर पथराव कर रहे हैं, पेट्रोल बम फेंक रहे हैं. ऐसे में जब मेरे कर्मी मुझसे पूछते है कि हम क्या करें तो क्या मुझे यह कहना चाहिए कि बस इंतजार करिए और जान दे दीजिए? मैं राष्ट्रीय ध्वज के साथ एक अच्छा ताबूत लेकर आऊंगा और सम्मान के साथ शव को आपके घर भेजूंगा. सेना प्रमुख के तौर पर क्या मुझे यह कहना चाहिए?”

रावत का इस बात का मतलब बिलकुल सीधा था, अब से कोई भी सैनिक वहां आत्महत्या करने नहीं धकेला जायेगा, मतलब अब वो उनको वैसा ही जवाब देगा जैसा वो चाहते हैं. रावत ने कहा कि मेरा काम वहाँ के जवानों का मनोबल बढ़ाना है, उन्हें उत्साही बनाये रखना हैं ना कि उनको मरने के लिए छोड़ देना.

सेना प्रमुख से जब सेना के आगामी रणनीति के बारे में पूछा गया तो उन्होंने साफ़ और कड़े शब्दों में कह दिया कि,

“मैं तो चाहता हूँ कि ये लोग पत्थर और पेट्रोल छोड़ कर हथियार चलाने पर आ जाये, उसके बाद का काम मेरा है. फिर मैं वही करूंगा जो मुझे करना चाहिए. फिर मैं कुछ चीजों को ले कर स्वतंत्र हो जाऊंगा. मैं खुले तौर पर फैसले करने में सक्षम हो जाऊंगा.”

पत्थर बाजों को लेकर पिछले कुछ समय में ही बहुत सी वीडियोज वायरल हुई हैं. जिनमें पत्थरबाजों ने सेना की जबाबी ऑपरेशन में आतंकियों को बचाकर निकाला है. इससे पहले भी सेना प्रमुख पत्थर बाजों को चेता चुके हैं कि आतंकियों की मदद करने वाले पत्थर बाजों को उसी तरह ट्रीट किया जायेगा जिसे तरीके से आतंकवादियों की तरह. इस बार सेना ने देश विरोधी हर आवाज की लय तोड़ने का प्रण किया दिखाई देता है. सेना ने पत्थरबाजों को उन्हीं की जुबान में समझाना और सिखाना शुरू कर दिया. मेजर गोगोई ने अपने साथियों, पोलिंग दल को बचने के लिए एक पत्थरबाज को जीप के आगे बांधकर ह्यूमन शील्ड की तरह इस्तेमाल किये जाने पर सेना प्रमुख ने इस पर कहा कि सेना को समस्याओं से लड़ने के वहां के माहौल के हिसाब से नए नए तरीके इजाद करने ही पड़ते हैं. इतना ही नहीं जीप पर युवक की मानव ढाल बनाने वाले मेज़र लितुल गोगोई को सम्मानित भी किया गया.

संकेत भी था, पद सँभालने के बाद से ही बिपिन रावत का ये रवैय्या घाटी के सभी विरोधियों की नींद उडाये हुए है. पिछले कुछ समय से देखने को मिला है कि सेना के कार्यों में राजनैतिक दखलंदाजी होती रही है लेकिन इसकी बंदी का संकेत साफ है. सैन्य घटनाओं पर किसी को उस सम्बन्ध में सेना को ज्ञान देने अधिकार लगभग खत्म होने पर आ रहा है. सीधी भाषा में राजनैतिक हस्तक्षेप बहुत कम हो गया है. आर्मी ने खुले आम आतंकियों और उनके मददगारों की धरपकड शुरू कर दी है. किसी को नहीं बक्शा जा रहा है, जो भी घाटी की शांति में खलल डालेगा वो सेना से नहीं बच पायेगा. सेना ने अलगाववादियों का असल चेहरा सबके सामने लाना शुरू कर दिया है. घुसपैठियों की कमर टूटने लगी है, सेना की संख्या में बढ़ोतरी की गयी है, जिसका मतलब साफ़ है.

घाटी में बहुत सी समस्याएं अभी भी बाकी है. कश्मीर पूरा ही इस प्रकोप का शिकार है ऐसा कहना भी गलत होगा, सेना प्रमुख के मुताबिक कश्मीर के चार जिले ही इसके प्रकोप में हैं. बाकी के कश्मीर में स्थिति नियंत्रण में है. कश्मीर मुद्दे को अब ठोस समाधान की जरुरत है. अभी तक सही मायने में कश्मीर वो मुद्दा है जिसको कोई समाधान तक पहुंचा ही नहीं पाया है. वहां पाकिस्तान का प्रभाव नज़र आ ही जाता है जिसे पूरी तरह से समाप्त करना होगा. लोकतंत्र का आये दिन वहां मखौल उड़ता नज़र आता है. लोकतान्त्रिक देश में कश्मीर में लोकतंत्र पर ही तमाचे पड़ रहे हैं. सेना की भूमिका सुनिश्चित करनी ही होगी. सेना को अधिकार देने ही होंगे और इस चीज का भारतीय जनता ने सम्पूर्ण समर्थन भी दिया है. जनता ने सामने आ कर सेना का मनोबल बढ़ाया है. इसे बढ़ाये जाने की खूब जरुरत है तो नहीं तो ऐसे अराजक माहौल में जम्मू-कश्मीर राष्ट्रपति शासन की ओर है.

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