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15 अप्रैल 1948. मौका था भारत की संविधान सभा का. सरकार की ओर से तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु सभा को संबोधित करते हुए कह रहे थे, “एटॉमिक एनर्जी को हमें शांतिपूर्वक इस्तेमाल के लिए विकसित करना है, लेकिन अगर हमें किसी ने मजबूर किया तो, चाहे हम जितनी भी शांति की बात कर लें युद्ध में इसके इस्तेमाल से रोका नहीं जा सकेगा.”

वैसे यह बात अलग है कि नेहरु परमाणु बम बनाना नहीं चाहते थे, सिर्फ तकनीक विकसित करना चाहते थे लेकिन आजादी के मात्र 8 महीने में संविधान सभा से गूंजे इन बोल के माध्यम से देश ने एक नयी पारी खेलना शुरू कर दी थी. इस टेस्ट पारी की शुरुआत तो नेहरु करते है लेकिन पूरी होती है वाजपेयी के समय में. बेशक पारी बेहतरीन थी तभी तो ताकतवर विरोधी टीम्स ने भारत पर पाबंदियां लगा कर चीटिंग से आउट करने का प्रयास किया. लेकिन इन सब के बीच भारत और अधिक ताकतवर देश बन कर उभरा. ये कहानी है हमारे कोवर्ट एटॉमिक नेशन से परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बनने की.

दरसल भारत ने न्यूक्लिअर क्षेत्र में पहला कदम तो 1945 में ही रख दिया था मगर पहला परीक्षण 18 मई 1974  में किया.

इसके बाद 1998 में भी पांच सफल परीक्षण हुए. इन परीक्षणों की घोषणा करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा, “मै इस बात को स्पष्ट करना चाहता हूँ कि भारत सदैव से शांति का पुजारी था, है और रहेगा. इसीलिए हमने नए अणु परीक्षण पर अपनी ओर से पाबन्दी लगा दी है. हमने दुनिया को अणु शस्त्र का पहला प्रयोग न करने का वादा किया है.”

वैसे तो बीजेपी जनसंघ के ज़माने से ही परमाणु परिक्षण के समर्थन में थी. 1967 में यह मुद्दा उसके चुनावी घोषणा पत्र में भी था लेकिन किसी को उम्मीद नहीं थी कि वह अपने वादे को सरकार में आते ही इतना जल्दी पूरा कर देगी.

20 साल पहले ही संकेत दे चुके थे अटल बिहारी वाजपेयी 

4 अक्टूबर 1977, संयुक्त राष्ट्र की 32वीं महासभा में अटल बिहारी वाजपेयी का वह ऐतिहासिक भाषण तो याद ही होगा जब पहली बार सभा में हिंदी का प्रयोग हुआ था. यहाँ भी परमाणु मुद्दे पर बेबाकी से बोलते हुए उन्होने कहा, “महोदय भारत ने लगभग 25 साल पहले आणविक शक्ति के शांतिमय उपयोग के कार्यक्रम को शुरू कर दिया था. अणुशक्ति के शांतिमय उपयोग के लिए हमारा विश्वास दृढ है. हम इस दृष्टिकोण से पूर्णतया सहमत है कि आणविक शस्त्रों का फैलाव और आणविक प्रौद्योगिकी का विस्तार दो अलग – अलग चीज़े हैं और इसके स्पष्ट अंतर को समझा जाना चाहिए.”

मतलब साफ था. अटलजी अंतराष्ट्रीय मंच पर भारत की स्थिति को मजबूत करना चाहते थे. इशारों ही इशारों में वे कह चुके थे कि मौका मिलेगा तो वे परमाणु परीक्षण कर सकते हैं.

लेकिन वाजपेयी सरकार से ही पहले पूरे एक्शन मोड में थे नरसिम्हा राव

कहा जाता है कि वाजपेयी से पहले नरसिम्हा राव ने वैज्ञानिकों को परमाणु परिक्षण के लिए तैयार रहने को कहा था. मगर इस वक्त अमेरिका को सेटेलाईट तस्वीरों के आधार पर खबर लग गयी थी कि भारत परमाणु परिक्षण की तैयारी कर रहा है. तब अमरिकी राष्ट्रपति क्लिंटन ने फ़ोन कर राव से इस खबर के बारे में जानकारी ली. राव ने “ये रूटीन मनेजमेंट का काम है, इसमे कुछ खास नहीं” कहकर माहौल को शांत किया. इसके बाद देश में चुनाव होने थे. चुनाव में जाने से पहले राव ने सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से कहा, “आप परमाणु परीक्षण की तैयारी पूरी रखिये, हम चुनाव जीत कर आएँगे तब परीक्षण करेंगे.” लेकिन कांग्रेस चुनाव हार गई.

इस बार अटल बिहारी वाजपेयी वाजपेयी की अगुवाई में भाजपा की सरकार बनी. अटलजी को कार्यभार देते हुए नरसिम्हा राव ने कहा अब आप परीक्षण कर लीजिये ” लेकिन महज 2 हफ्तों में ही यह सरकार गिर गई.

लेकिन अबकी बार बहुमत के साथ आये वाजपेयी

पहली बार 2 हफ्तों की सरकार चलाने के बाद, एकबार फिर 18 मार्च 1998 को वाजपेयी प्रधानमंत्री बने. कुछ ही दिन बाद वाजपेयी ने कलाम और उस वक्त के एटॉमिक एनर्जी कमीशन के चेयरमेन आर. चिदम्बरम से न्यूक्लियर प्रोग्राम के बारे में जानकारी ली और कहा, “तो ठीक है, आप तैयारी कीजिये, हम जल्द ही फैसला करेंगे.” इसी बीच 6 अप्रैल को पाकिस्तान ने गौरी मिसाइल छोड़ी और वाजपेयी को लग गया कि अब समय आ गया है. इसके ठीक तीन दिन बाद वाजपेयी ने कलाम से पूछा, टेस्ट की तैयारी में आपको कितना वक्त लगेगा?” कलाम ने जवाब दिया,“यदि आप आज आदेश देते हैं तो हम 30वें दिन टेस्ट कर सकते हैं.” इतना सुनते ही वाजपेयी ने टेस्ट की तैयारी शुरू करने और तारीख फ़ाइनल करने को कहा. सबसे पहले 10 मई को टेस्ट करने को सोचा गया मगर तत्कालीन राष्ट्रपति के. आर. नारायणन 26 अप्रैल से 10 मई तक लैटिन अमेरिका की यात्रा पर थे. इसलिए आखिर में तारीख तय हुई 11 मई की. दिन था बुद्ध पूर्णिमा का.

परीक्षण को “ऑपरेशन शक्ति” का नाम दिया गया.

लेकिन 1974 में  बुद्ध क्यूं मुस्कुराये ? 

परमाणु संपन्न होने की राह पर पहला पड़ाव इंदिरा गाँधी की वजह से हासिल हुआ. 

1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ जिसमें भारत बुरी तरह हार गया. अब भारत के सभी राजनितिक दलों ने परमाणु बम बनाने की मांग रखी जिसमे जनसंघ मुख्य था. इस समय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री परमाणु बम बनाने के एकदम खिलाफ थे लेकिन डिपार्टमेंट ऑफ़ एटॉमिक एनर्जी के पहले सचिव डॉ. होमी जहाँगीर भाभा इस तकनीक के पक्षधर थे. भाभा का मानना था,“पर्याप्त संख्या में एटमी हथियार से सुसज्जित होने पर मुल्क को सुरक्षा मिलती है और इससे बड़े और शक्तिशाली देशों  के हमले से भी सुरक्षा मिलती हैं. सुरक्षा का यह एक सस्ता विकल्प हैं.”

1964 में जनसंघ ने लोकसभा में बम बनाने का प्रस्ताव रखा. जिसके चलते शास्त्री के रुख में बदलाव आया लेकिन 1965 में शास्त्री और भाभा दोनों की आकस्मिक मृत्यु हो गई.

इसके बाद इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री बनी और डॉ. विक्रम साराभाई को परमाणु कार्यक्रम की जिम्मेदारी मिली. यहाँ दोनों ही बम बनाने के खिलाफ थे मगर इंदिरा गाँधी 1971 के भारत–पाकिस्तान युद्ध से पहले अपनी सोच बदल चुकी थी. करीब दो साल पहले उनके खास सलाहकार पी. एन हक्सर ने उन्हें सलाह दी कि, एक देश की ताकत केवल उसके सिद्धांतों पर टिकी होती बल्कि उसे सेना और परमाणु शक्ति भी चाहिए होती है. बड़े देश आपकी बात तभी सुनेंगे जब आप में ऐसा करने की ताकत होगी, इसलिए यह कार्यक्रम जारी रखिये.”

इसके बाद 1968 में इंदिरा गाँधी ने गुप्त रूप से परमाणु कार्यक्रम की मंजूरी दे दी. 7 सितम्बर 1972 को इंदिरा गाँधी को भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में लकड़ी से बना एटम बम का मॉडल दिखाया गया और इसके ठीक दो साल बाद 18 मई 1974 को भारत ने राजस्थान के पोखरण में पहला परमाणु परीक्षण कर डाला. यहाँ भी दिन था बुद्ध पूर्णिमा का. ने पर कहा गया, “बुद्धा इज स्माइलिंग”. भारत ने इस परमाणु परीक्षण बारे में कोई घोषणा नहीं की. राजस्थान के जैसलमेर में स्थित इस जगह को बुद्ध स्थल का नाम मिला. 

यहाँ पहला परमाणु विस्फोट तो हुआ लेकिन इंदिरा सरकार ने दुनिया से कहा कि, यह एक शांतिपूर्ण परमाणु परीक्षण है जिसका एटम बम से कोई लेना देना नहीं.” यह संयुक्त राष्ट्र के पांच स्थायी सदस्य देशों के अलावा किसी भी अन्य देश द्वारा किया गया पहला परमाणु हथियार का परीक्षण था. लेकिन जैसे और देशों के इसके बारे में जैसे ही पता लगा भारत पर पाबंदियां लगाना शुरू कर दिया और भारत को एक कोवर्ट एटॉमिक नेशन के रूप में जाने जाना लगा. 

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