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पाकिस्तानियों, न्यूक्लियर बम की धमकी देना छोडो, पहले होमवर्क करना तो सीखो !

असल उत्तर की लड़ाई : 1965 की जंग की वो कहानी जब परवेज मुशर्रफ बचने के लिए अपना पैटन टैंक छोड़ भाग निकला.

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  • October 15,2016
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भारत के मुकाबले पाकिस्तान की सैन्य शक्ति कहीं नहीं ठहरती है. लेकिन भारत के परमाणु हथियारों से अपने जखीरे में 10 परमाणु हथियार ज्यादा हैं. बस इसी बात पर बार-बार परमाणु हमले की धमकी देने वाले पाकिस्तानी अपने होमवर्क पूरा न करने के लिए मशहूर है. शायद भूल जाते हैं कि 1965 से लेकर 1999 कारगिल तक की लड़ाईयों में हमने पाकिस्तान के जबर्दस्त तरीके से दांत खट्टे किये हैं.

टीवी डिबेट्स से लेकर ट्विटर पर हम हिन्दुस्तानियों की कमेंट्स के जबाब में बेसिरपैर और खोखले तर्कों से  सिर्फ और सिर्फ न्यूक्लियर अटैक की रटन करने में मशगूल इन पाकिस्तानियों की 1965 की असल उत्तर में हुई टैंक बैटल में हुई हार का कडवा घूँट याद दिलाते रहना चाहिए.

बात 1965 की जंग की है जब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की कड़ी राजनीतिक इच्छाशक्ति से भरे निर्णयों और भारतीय सेना के अदम्य रणकौशल ने पाकिस्तान के होमवर्क की कलाई खोल दी.  पाकिस्तान कच्छ के रण में अपने ऑपरेशन डेजर्ट हॉक और कश्मीर में ऑपरेशन जिब्राल्टर में विफल होने के बाद अमृतसर पर कब्जे के नापाक इरादे से ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम जारी रखे हुए था.

भारत सेना ने लाहौर की तरफ कूच करने के रणनीति के तहत पाकितानी सीमा के अन्दर जाकर इच्छोगिल नहर पर कब्ज़ा कर लिया था. जबाब में इससे ध्यान बंटाने के लिए पाकिस्तानी सेना ने 7 सितम्बर 1965 को भारतीय सीमा के अन्दर पंजाब में खेमकरण पर हमला किया और अपने कब्जे में ले लिया. उस समय भी अमेरिका से हासिल पैटन टैंकों के बदौलत पाकिस्तान अपने आपको अजेय मान रहा था. अमेरिकन पैटन टैंक जो की उस समय के नवीनतम टैंक था जिसकी क्षमता भारतीय सेना के पास द्वितीय विश्व-युद्ध के समय से उपलब्ध सेंचुरियन टैंक के मुकाबले कहीं अधिक थी और उसे नष्ट करना आसान काम नहीं था. तकरीबन 300 से ज्यादा टैंकों की बटालियन के साथ पाकिस्तान सेना ने खेमकरण से आगे बढ़ते हुए पंजाब के एक गाँव असल उत्तर में घुसना करना शुरू किया. असल उत्तर को पाकिस्तानी टैंकों की घनघोर आवाज़ और धुल के गुबार ढँक लिया. पाकिस्तानी टैंकों की बटालियन ग्रैंड ट्रंक रोड पर कब्जे के मकसद से आगे बढ़ रही थी.  

असल उत्तर की लड़ाई 1965 की जंग में भारत के लिए टर्निग पॉइंट साबित हुई जिसने पकिस्तान को घुटने ताकने पर विवश कर दिया और भारत की जीत हुई.

लेकिन भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना और टैंकों को रोकने के लिए पुख्ता रणनीति तैयार की और ऑपरेशन ‘हॉर्स-शू’ लांच किया. पाकिस्तानी सेना को तीन तरफ से घेरकर धावा बोलने वाला ऑपरेशन ‘हॉर्स-शू’ वह फन्दा था जिसमें फाँसकर पाकिस्तानी टैंक बटालियन की वो कब्रगाह बनायी गयी थी जिसे पाकिस्तान ने सपने में भी नहीं सोचा था. इस प्लान के तहत घोड़े की नाल के आकर में अत्याधुनिक टैंको से लैस पाकिस्तानी सेना पर करीब से हमला करना था. इसके लिए सिंचाई की नहरों को तोड़कर गन्नों के खेतों में पानी भरकर उन्हें दलदली बना दिया गया जिससे कि टैंक आकर उनमें फँस गये और इन अभेद्य समझे जाने वाले कई पाकिस्तानी टैंको को मात्र जीप पर माऊंट रेकोइललेस गन्स और सेंचुरियन टैंक जिन्हें गन्नों के बीच छुपाकर रखा हुआ था, चुन-चुन कर उड़ा दिया. तीन-चार दिन चली इस लड़ाई में पाकिस्तानी फ़ौज को उन टैंकों वहीँ छोड़कर भाग खड़ी हुई. ऐसे ही इन टैंकों के भगोड़े कमांडिंग लेफ्टीनेन्स में परवेज मुशर्रफ भी शुमार हैं.

असल उत्तर की जीत में भारत सेना के जांबाज हवालदार अब्दुल हमीद नायक रहे जिन्होंने अकेले अपने ही दम पर रेकोइललेस गन से लगातार जगह बदलते हुए सात पैटन टैंकों को उडा डाला. इसके लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. इस पैटन टैंक की कब्रगाह को आज पैटन नगर के नाम से जाना जाता है.  

यही नहीं इस जंग में पाकिस्तान के पास अपने जंगी बड़े में शामिल लड़ाकू विमान सेबरजेट जो कि भारतीय लड़ाकू विमान नेट से तकनीक व क्षमता में अच्छे थे लेकिन भारतीय पायलेटों ने कम क्षमता वाले जेटों से कई सेबरजेट विमानों को मार गिराया और बता दिया कि जंग केवल आधनिक हथियारों से नहीं बल्कि जवानों की दक्षता व हौसलो से जीती जाती है.

खैर इस प्रकार 1965 की जंग में हमारी जीत हुई और एक बार फिर अधूरे होमवर्क की वजह से पाकिस्तानी रणनीतिकारों की टें बोल गयी. 

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